विश्व दिवस आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा और उनकी सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण का प्रतीक है और आदिवासी समुदायों के योगदान और समृद्ध विरासत को स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है_____डॉ. फादर एम. के. जोश
सहजाद आलम/महुआडांड़
संत जेवियर्स महाविद्यालय के सभागार में 09/08/24 दिन शनिवार को विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत प्राचार्य फादर डॉ. एम. के. जोश, उप प्राचार्य डॉ. फादर समीर टोप्पो, फादर राजीप तिर्की, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर रोज एलिस बारला के दीप प्रज्जवलन के साथ प्रारंभ किया गया।
महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने इस दिन को ख़ास व यादगार बनाने हेतु सभागार में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जिसमें नागपुरी नृत्य, सादरी नृत्य, खोरठा नृत्य, संथाली नृत्य इत्यादि रंगारंग कार्यक्रम को प्रस्तुत किया गया । विद्यार्थियों ने आदिवासी परंपरा को प्रदर्शित करने हेतु विभिन्न प्रकार के आदिवासी नृत्य किए जैसे झूमर नृत्य, छऊ , पाइका , डोमकच जो जनजातियों की अनूठी परंपराओं और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा जो जनजातियों के जीवन में महत्वपूर्ण घटनाओं को चिह्नित करने के लिए किए जाते हैं।
हो, संथाल, मुंडा, भूमिज, माहली, खड़िया, गोंड, उरांव, बिरजिया , पहाड़िया समेत अन्य आदिवासी जनजातीय समाज के लोगों के जीवन, उनके पारंपरिक वाद्य यंत्र, भाषा, ज़मीन व जंगल के साथ उनका संबंध , प्रकृति के प्रति स्नेह व संस्कृति व परंपरा को विद्यार्थियों ने अपनी अद्भुत कलाओं के माध्यम से स्टेज पर चित्रण व प्रदर्शित किया। इसके लिए उन्हें सर्टिफिकेट व पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
असिस्टेंट प्रोफेसर रीमा रेणु ने अपने भाषण में आदिवासियों के जीवन और उनकी परंपरा से संबंधित तथा साथ ही साथ राष्ट्र व राज्य के विकास में उनके योगदान के बारे में विद्यार्थियों को जानकारी प्रदान की तथा आदिवासी समुदाय, संस्कृति और उनकी जीवन की रूपरेखा पर वृहत् स्तर पर प्रकाश डाला।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ फादर एम.के. जोश ने विश्व आदिवासी दिवस पर अपने संदेश के दौरान कहा कि आदिवासियों ने मानव कल्याण के लिए जल, जंगल खनिज संपदा एवं पर्यावरण का संरक्षण किया, लेकिन आज उसका उपयोग सभी कर रहे हैं। आज भी आदिवासी संस्कृति हमें एक ऐसी व्यवस्था अपनाने को प्रेरित करती है, जो प्रकृति के नियमों का पालन कर सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ती है। इसलिए आदिवासी परंपरा व उनके संस्कृति का संरक्षण अति आवश्यक है।
प्राचार्य ने यह भी कहा कि उनका पारंपरिक ज्ञान, टिकाऊ प्रथाएँ और जीवन के अनूठे तरीके मानव इतिहास और अनुकूलन की हमारी समझ में योगदान करते हैं। बहुलवादी और समावेशी वैश्विक समाज को बढ़ावा देने के लिए उनकी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना और उसका सम्मान करना महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि हमारा कर्तव्य भी है।
अंत में असिस्टेंट प्रोफेसर रोज एलिस बारला और रीमा रेणु कुंडलना ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी प्रोफेसर्स गण और गैर शिक्षक कर्मचारियों को तथा साथ ही साथ सभी विद्यार्थियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य व उप प्राचार्य सहित प्रोफेसर्स अभय सुकुट डुंगडुंग, रॉस एलिस बारला, रीमा रेणु, फादर राजीप, फादर समीर, फादर लियो, सिस्टर चंद्रोदय, शेफाली प्रकाश, रोज़ी सुष्मिता तिर्की, मनु शर्मा, अरेफुल हक़ इत्यादि शामिल थे।