चोरमुण्डा गांव में 52 ग्रामीण महिलाओं ने मोटे अनाजों स्वादिष्ट व्यंजन बनाने के गुर सीखे।
सहजाद आलम /महुआडांड़
हाल के वर्षों में मोटे अनाजों जिसे प्रधान मंत्री ने श्री अन्न की संज्ञा दी है।देश विदेश के बाजारों में काफी तेजी से माँग बढ़ी है। विगत वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष मनाया गया। पोषक तत्वों से समृद्ध इन अनाजों को सुपरफूड के नाम से भी जाना जाने लगा है। इन अनाजों में बाजरा, ज्वार, मड़ुआ (रागी) कँगनी, कुटकी और सावाँ आते हैं। झारखंड के आदिवासी इलाकों में इनकी खेती 90 के दशकों तक वृहत पैमाने पर की जाती थी।लेकिन बाजार के अभाव और इन खाद्य अनाजों को गरीबों का आहार कहकर तौहीनी का विषय बनाकर इसे गरीबों की थाली से दूर किया गया। आज ये महंगे अनाज बाजार के कब्जे में जकड़ता जा रहा है। वहीं इसे पैदा करने वाले किसान इसकी महत्ता को समझें इस उदेश्य से 26 नवंबर को महुआडांड़ प्रखंड के चोरमुण्डा गाँव में मिलेट मिक्सर मशीन से चावल तैयार करने, कंकड़ पत्थर साफ करने और स्वादिष्ट व्यंजन बनाने की ट्रेनिंग ग्रामीण महिलाओं को दी गई। इस प्रशिक्षण में महुआडांड़ प्रखण्ड के अलावे मनिका और बरवाडीह प्रखण्ड के 13 गाँव से 53 महिलाओं ने भाग लिया। बतौर प्रशिक्षक आर० आर० नेटवर्क हैदराबाद से रवि कुमार शामिल थे। प्रशिक्षण के दौरान सभी प्रतिभागी अपने साथ इस वर्ष कटाई किए गए गोंदली और मडुआ भी साथ लेकर आए थे। जिसे महिलाओं ने प्रशिक्षण के दौरान ही प्रोसेसिंग कर अपने परिवार में खाद्य आहार बनाने हेतु लेते गए। इस प्रशिक्षण में सभी प्रतिभागी सावां (Little Millets) से कर्ड राईस अर्थात दही चावल और गोंदली गोंदली का खिचड़ी बनाया और दोपहर के भोजन में इसे खाया। सभी खाने वालों ने इसका स्वाद चखा और अपने अनुभव साझा करते हुए कहा वाह क्या स्वाद है।बताते चलें कि महुआडांड़ और विशुनपुर प्रखंड के इन पाठ इलाकों में प्रमुख रूप से खेती इन्हीं मोटे अनाजों खासकर गोंदली और मड़ुए की ही की जाती है। उचित जानकारी और बाजार के अभाव में यहाँ के किसान इसे स्थानीय बाजार में साहूकारों को औने पौने मूल्य में बेच देते हैं । साहूकार उच्च दामों पर देश के बड़े बाजारों में बेचकर भारी,भरकम मुनाफा कमाते हैं। चोरमुण्डा के सेबेस्तियानी की बताती हैं कि यहाँ गोंदली 30 में हमलोग साहूकारों को बेचते हैं। यदि इसी को हमलोग चावल बनाकर नेतरहाट में पर्यटन स्थल में बेचें तो 100 रुपये किलो बिक जाता है। संस्था मल्टी आर्ट एसोसिएसन की कोशिश है, कि इस इलाके की महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जाए। इन इलाकों में वगैर किसी रासायनिक खाद के खेती किए जाने वालों फसलों जिसमें दलहन और तिलहन भी शामिल हैं। उन्हे बाजार उपलब्ध कराया जाए। इस दिशा में काफी काम आगे बढ़ा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में भी इन फसलों को जनवितरण प्रणाली के माध्यम से उपभोक्ताओं को वितरण की बात कही गई है। लेकिन राज्य सरकार के उदासीन रवैये के कारण ऐसे अनाज खेती करने वाले कृषकों को समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है।