वट वृक्ष की परिक्रमा कर की पूजा अर्चना।
मोहम्मद सहजाद आलम /महुआडांड
महुआडांड प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में गुरूवार को सुहागिनों ने वट सावित्री की पूजा धूमधाम से मनाया। सुहागिनों ने अखंड सौभाग्य का वरदान मांगा। वहीं वट वृक्ष की विधि विधान से पूजा अर्चना की। सुहागिनों ने वट वृक्ष की परिक्रमा कर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजन कार्य संपन्न किया।सभी सुहागिनें सोलह श्रृंगार करके वट वृक्ष पूजा स्थल पर पहुंची। जहां सबों ने पूजा करने के लिए पंक्ति बद्ध बैठकर हवन और आरती की।
पंडित सर्वेश पाठक, राजेश पाठक समेत कई पुरोहितों ने पूजन कार्य संपन्न कराया।
मौके पर आवासीय विद्यालय महुआडांड के समीप स्थित शिव मंदिर परिसर, महुआडांड दुर्गा बाड़ी परिसर स्थित वट वृक्ष के पास, रामपुर चौक के समीप स्थित वट वृक्ष के पास, आईआरबी कैंप स्थित वट वृक्ष के पास आदि स्थानों में महिलाओं की संख्या काफी देखी गई।
सुहागिन महिलाओं के सौभाग्य की रक्षा के लिए किया गया वट सावित्री व्रत।
सुख-संपन्नता और पति की दीर्घायु के लिए रखे जाने वाला सुहागिन महिलाओं का वट सावित्री व्रत गुरूवार को किया गया, वट सावित्री व्रत की पूजा जेष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या में की जाती है, वट सावित्री पूजा के दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और पति की लंबी उम्र के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।
शास्त्रों के अनुसार बरगद के पेड़ को चिरंजीवी कहा जाता है, क्योंकि इस पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवों का वास है। जिन जातकों की कुंडली में शनि दोष है। शनि की महादशा, ढैया, साढ़ेसाती चल रही है ऐसे, जातक इस दिन शनि देव की विशेष पूजा-अर्चना कर दोष मुक्त हो सकते हैं। इस दिन की गई शनिदेव की पूजा-अर्चना, दान -पुण्य करने से शनि देव प्रसन्न होकर के यश, वैभव, सुख संपदा की वृद्धि तीव्रता से करेंगे। इस दिन गंगा स्नान, पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलेगी।
वट सावित्री कथा
दरअसल, देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान को मृत्यु के मुंह से बचाया था. ऐसी मान्यता है कि राजा अश्वपति की बेटी सावित्री की शादी राजकुमार सत्यवान से हुई थी. एक दिन वे जंगल में लकड़ी काटने गए हुए थे. काम करते समय उनका सिर घूमने लगा और वे यम को प्यारे हो गए. जिसके बाद सावित्री ने पति को दोबारा जीवित करने की ठान ली. उन्होंने यमराज से गुहार लगाई. वट के वृक्ष के नीचे बैठ कर कठोर तपस्या की. कहा जाता है कि इस दौरान सावित्री पति की आत्मा के पीछे भगवान यम के आवास तक पहुंच गयी. अंत में उनकी श्रद्धा की जीत हुई. यमराज ने सत्यवान की आत्मा को लौटाने का फैसला किया. जिसके बाद से महिलाएं इस दिन पति की आयु के लिए व्रत रखती हैं.

वट वृक्ष की पूजन विधि।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। इस पावन दिन वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व होता है। वट वृक्ष के नीचे सावित्रि और सत्यवान की मूर्ति को रखें। इसके बाद मूर्ति और वृक्ष पर जल अर्पित करें। लाल कलावा को वृक्ष में सात बार परिक्रमा करते हुए बांधें और व्रत कथा सुनें। इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
विधि विधान से हुई वट सावित्री पूजा, सुहागिनों ने मांगा अखंड सौभाग्य का वरदान.
बारियातू। प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में गुरूवार को सुहागिनों ने वट सावित्री की पूजा धूमधाम से मनाया। सुहागिनों ने अखंड सौभाग्य का वरदान मांगा। वहीं वट वृक्ष की विधि विधान से पूजा अर्चना की। सुहागिनों ने वट वृक्ष की परिक्रमा कर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजन कार्य संपन्न किया।सभी सुहागिनें सोलह श्रृंगार करके वट वृक्ष पूजा स्थल पर पहुंची। जहां सबों ने पूजा करने के लिए पंक्ति बद्ध बैठकर हवन और आरती की।
पंडित सर्वेश पाठक, राजेश पाठक समेत कई पुरोहितों ने पूजन कार्य संपन्न कराया
सुहागिन महिलाओं के सौभाग्य की रक्षा के लिए किया गया वट सावित्री व्रत।
सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु,और सुख समृद्धि के लिए वट सावित्री व्रत गुरूवार को किया गया, वट सावित्री व्रत की पूजा जेष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या में की जाती है, इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और पति की लंबी उम्र के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।
शास्त्रों के अनुसार बरगद के पेड़ को चिरंजीवी कहा जाता है, क्योंकि इस पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवों का वास है। जिन जातकों की कुंडली में शनि दोष है। शनि की महादशा, ढैया, साढ़ेसाती चल रही है ऐसे, जातक इस दिन शनि देव की विशेष पूजा-अर्चना कर दोष मुक्त हो सकते हैं। इस दिन की गई शनिदेव की पूजा-अर्चना, दान -पुण्य करने से शनि देव प्रसन्न होकर के यश, वैभव, सुख संपदा की वृद्धि तीव्रता से करेंगे। इस दिन गंगा स्नान, पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलेगी

वट सावित्री कथा
कथा के अनुसार देवी सावित्री अपने पति सत्यवान को मृत्यु के खीच लायी थी.सावित्री जो राजा पशुपति की बेटी थी ,उसकी शादी राजकुमार सत्यवान से हुई थी. एक दिन वे दोनों जंगल में लकड़ी काटने गए हुए थे. उसी दौरान सत्यवान का सिर घूमने लगा,वह गीर पडा ,उसका प्राण निकल गया . इस घटना के बाद सावित्री ने पति को दोबारा जीवित करने की ठान ली. उन्होंने यमराज से गुहार लगाई. वट के वृक्ष के नीचे बैठ कर कठोर तपस्या की. कहा जाता है कि इस दौरान सावित्री पति की आत्मा के पीछे भगवान यम के आवास तक पहुंच गयी. अंत में उनकी श्रद्धा की जीत हुई. यमराज ने सत्यवान की आत्मा को लौटाने का फैसला किया. जिसके बाद से महिलाएं इस दिन पति की आयु के लिए व्रत रखती हैं.
